गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

विचारहीन प्राथमिकताओं से आज़ादी


मेधा पाटकर का यह आलेख उन विचारहीन प्राथमिकताओं पर विचार करता है, जिसके बोझ तले हिन्दुस्तान का आम आदमी आज़ादी के ६२ साल बाद भी दबा हुआ है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें