बुधवार, 17 नवंबर 2010

आवरण पृष्ठ


फाल्गुन विश्व के नवम्बर अंक का आवरण। आपको कैसा लगा हमें जरूर बताएं

संगीता महाजन के चित्र


इस बार फाल्गुन विश्व के आवरण पर और भीतर के पृष्ठों पर आप जितने भी छाया चित्र देखेंगे, सभी मशहूर छाया चित्रकार संगीता महाजन के कैमरे का कमाल हैं।

यह अंक मासूमियत को समर्पित

यह पृष्ठ हमारे इस बार के अंक की विशेषता बताता है। इस पृष्ठ पर शमशेर बहादुर सिंह की कविता 'कोठरी के आईने में धूप' है और .....

विषय-वस्तु पृष्ठ


शिक्षक सर, टीचर मैडम, आइये बच्चों को मार दें


मासूम मन पर सब से ज्यादा प्रभाव स्कूलों का होता है। लेकिन आजकल के स्कूल मासूम मन की मासूमियत के किस तरह हत्या कर रहे हैं इसी की बानगी है फतेहचंद की इस कविता में। इस कविता को ही इस बार हमने प्रथम बात स्तम्भ का विषय बनाया है।

इस पृष्ठ पर अरुण कमल और कुमार अम्बुज की कविता


सातवीं कक्षा के विद्यार्थी का शोध प्रबंध, लीजिये शीर्षक ने ही सब कुछ कह दिया। अरुण कमल ने इस कविता के जरिये बालपन से किशोरावस्था की दहलीज पर पहुँचते बच्चों की मानसिकता का मार्मिक विश्लेषण किया है इस कविता में। और कुमार अम्बुज ने एक नागरिक के तौर पर हमारे संकुचित होते जाने को अपनी कविता का विषय बनाया है। दोनों ही कविताएँ मासूम मानों पर खूब प्रभाव छोड़ती हैं।

इस पृष्ठ पर विष्णु खरे और गुलज़ार की कविताएँ

परीक्षा को लेकर विद्यार्थिओं में होने वाले उंहापोह पर विष्णु खरे की कविता और खिलौनों के प्रति बच्चिओं के मोह पर गुलज़ार की कविता।

व्योमेश शुक्ल की दो कविताएँ

आधुनिक हिंदी कविता के सशक्त हस्ताक्षर व्योमेश शुक्ल की यह दो कविताएँ इस मासूमियत विशेषांक की ख़ास आकर्षण हैं।

बच्चों के लिए छह कविताएँ




दुनिया भर में मशहूर छह बाल कविताओं से फाल्गुन विश्व के इस 'मासूमियत' विशेषांक में बच्चों के लिए प्रस्तुत रचनाओं का समापन।

कहाँ हैं बाल गृहों से भागे बच्चे?


पत्रकार शिरीष खरे इस बार बाल गृहों से भागे बच्चों की कैफिअत समझने का प्रयास कर रहे हैं।

बाल रंगमंच को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिये : रेखा जैन




मशहूर बाल रंगमंच निर्देशक रेखा जैन का हाल ही देहावसान हुआ। मृत्यु के कुछ ही दिनों पहले छत्तीसगढ़ के प्रतिष्टित हिंदी दैनिक 'देशबंधु' ने उनका साक्षात्कार प्रकाशित किया था। वही साक्षात्कार फाल्गुन विश्व के पाठकों के लिए देशबंधु से साभार। यह रचना हमारे छत्तीसगढ़ प्रभारी कृष्ण धर शर्मा के सौजन्य से।

मुक्तिबोध की कविता- मध्यवर्गीय संघर्ष और विषमताओं की ताकत का आख्यान
















शैलेन्द्र चौहान ने इस बार मुक्तिबोध की कविताओं की ताकत को समझने और हमें समझाने का सफल प्रयास किया है।

कवि स्तम्भ में इस बार मनोज झा

मनोज की कविताओं से हम सब को परिचित करने का श्रेय नए कहानीकार चन्दन पाण्डेय को है।

मनोज शर्मा की तीन कविताएँ


मनोज शर्मा की तीन कविताएँ

यह सब कर गए सौदागर ओबामा




इसी महीने अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत के दौरे पर आये थे। यहाँ आकर उन्होंने क्या साधा? हमने क्या खोया? क्या पाया? और अमेरिका ने बिना कुछ खोये क्या पाया? बता रहे हैं सचिन जैन।

धर्मनिरपेक्ष-प्रजातांत्रिक राजनीति और जमायत-ए-इस्लामी




इरफ़ान अहमद की ताज़ा किताब इस्लामिस्म एंड डेमोक्रसी इन इंडिया का मशहूर इस्लामी विद्वान डाक्टर असगर अली इन्जीनीअर द्वारा विश्लेषण।

चुटिया धारी कामरेड

आशीष बाबू लखनऊ के मशहूर सीएम् सी स्कूल से पढ़े हैं लेकिन देखिये तो करते क्या हैं..... बता रहे हैं पुलिस अधिकारी अमिताभ ठाकुर।

अंतिम पृष्ठ


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