बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

'अचम्भे का रोना' पर मनीषा कुलश्रेष्ठ

चित्रकार यों अपनी कूची और रंगों की भाषा में बात करता हैं, लेकिन जब वह लिखता है, तो किस तरह आध्यात्म की पराकाष्ठ होती है, बता रही हैं देश की लाड़ली साहित्यकार मनीषा कुलश्रेष्ठ. मनीषा की टिपण्णी किताब को खरीदकर पढ़ने के लिए प्रेरित करती है.




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